शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

हरषा रही हिन्दी


सारथी कृष्ण बने महाभारत

युद्ध में है यह स्यंदन हिन्दी ।

भाग सके न कहीं मन मादक

प्रीत का है यह बंधन हिन्दी ।

लाख भुजंग लपेटे हों शीतल

गंध न छाडे है चन्दन हिन्दी ।

हैं वन बाग अनेक परन्तु

जिसे कहते वह नंदन हिन्दी ।।

जो इसे दूर से देख रहे

उनको भले ही तरसा रही हिन्दी ।

है इतनी ये उदार की प्यार से

प्रेम - सुधा बरसा रही हिन्दी ।

नित्य नया - नया रूप लगे

रमणीयता को दरसा रही हिन्दी ।

हारी नहीं कभी शत्रुओं से

हिय खोल सदा हरषा रही हिन्दी ।

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