बुधवार, 22 अगस्त 2012

प्रवासी है हिन्दी ..

जो यमपास से खींच के लायी 
पती  को उसी का सतीत्व है हिन्दी .
जो कवि - कर्म कथा लिख डाले 
उन्हीं ऋषियों का कृतित्व है हिन्दी .
हिन्दी के नाम पे कोष भरें 
उनके लिए एक वृतित्व है हिन्दी .
कोई संदेह नहीं इसमें यह
भारत का अस्तित्व है हिन्दी ..

लोग इसे समझें न भले पर 
शंकर सी अविनासी है हिन्दी .
लोक से ऊपर है भवलोक 
त्रिलोक से न्यारी ये काशी है हिन्दी .
चाहे कभी भी पुकारो इसे 
कह दोगे स्वयं मृदुभाषी  है हिन्दी .
बाहर जाकर देखो लगेगा 
जहाँ में कहीं भी प्रवासी है हिन्दी ..