शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

माथ है हिन्दी


सिर्फ पुकार के देखो इसे

अपनी है अनाथ की नाथ है हिन्दी ।

कर्म ही पूजा है पाठ पढ़ाती ये

कर्मठ के लिए हाथ है हिन्दी ।

अंग इसे नहीं छांट सकोगे ये

आँख है , नाक है , माथ है हिन्दी ।

हिन्दी वगैर अधूरा सभी कुछ

जीवन मृत्यु के साथ है हिन्दी ॥

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

आज है हिन्दी


नाचे लाला छछिया भर छाछ पे

ये उस छाछ की राज है हिन्दी ।

सारा जहान अचम्भित होके

विलोके जिसे वह ताज है हिन्दी ।

काव्य कला कमनीय कलेवर

धारे हुए अभिराज है हिन्दी ।

भूत भविष्य समेटे हुए जो

नवीन दिखे वह आज है हिन्दी ॥

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

आखर ढाई है हिन्दी

कृष्ण दोहावली और गीतावली
जानकी मंगल है यह हिन्दी ।
भारत दुर्दशा , बावन वैष्णव ,
पार्वती मंगल है यह हिन्दी ।
रेणु , श्रीरुद्र , श्रीपुंज, श्रीकुंज ,
श्रीभट्ट, श्रीअंचल है यह हिन्दी ।
प्रेमीहैं, लाल हैं , मिश्र हैं सेठ हैं ,
कंचन , मंगल है यह हिन्दी ॥
* * *
चंचलता का तो नाम न जाने
स्वभाव में सर्वदा थाई है हिन्दी ।
अंक में फूले फले जो सदा
उसके लिए बाप औ माई है हिन्दी ।
राज की लाज बचाने के हेतु
बनी यह पन्ना सी धाई है हिन्दी ।
जाके लिए तरसे दुनिया वह
प्रेम का आखर ढाई है हिन्दी । ।



गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

मकरंद है हिन्दी


है कविता नवगीत है गीत ,

अगीत तो काव्य में छंद है कविता ।

एक से एक महाकवि काव्य हैं ,

मुक्तक और प्रबंध है कविता ।

राष्ट्र का प्रेम है नेम है धर्म का ,

सभ्यता का अनुबंध है हिन्दी ।

पौध है , डाल है , पात है , फूल है ,

फूलन में मकरंद है हिन्दी ॥

* * *

देश की रानी है हिन्दी ही भाषा ,

बता गये कामिल फादर हिन्दी ।

आमी नदी के किनारे बना दी

कबीर को पुष्प ये चादर हिन्दी ।

गागर सागर श्रीनटनागर के

व्यवहार में आदर हिन्दी ।

जो बरसे सुखशान्ति समृद्धि के

खातिर ही वह बादर हिन्दी ॥

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

एक नया यह दौर है हिन्दी

दुःख इसे इस बात का है
अपने ही जनों से ये हारी है हिन्दी ।
कोमल है कश्मीर की वादी में
केशर की यह क्यारी है हिन्दी ।
निर्मल नारी स्वभाव लिए
नमिता से भरी यह नारी है हिन्दी ।
पिंगल शास्त्र , पुराण की पंक्ति है
वेद ऋचा सी ये प्यारी है हिन्दी ॥
* * *
भारत का जो निवासी बने
उसके लिए भाई का भात है हिन्दी ।
जो दुःख दर्द में आके खडा
दिन रात रहे वह नात है हिन्दी ।
जो सदा विष्णु के ऊपर राजे
वही तुलसीदल पात है हिन्दी ।
जो तम भेद प्रकाश का पुंज दे
वो सुखदायी प्रभात है हिन्दी ॥
* * *
औध की और बुन्देल की और तो ,
पूरब पश्चिम और है हिन्दी ।
तोता आ खोता लगावे जहां ,
वह आम्र का मादक बौर है हिन्दी ।
कागा ले भागा जो श्याम के हाथ से
रोटी का पावन कौर है हिन्दी ।
शोध पे शोध नए नित हो रहे ,
एक नया यह दौर है हिन्दी ॥