बुधवार, 24 अप्रैल 2013

प्रवासी है हिन्दी

लोग इसे समझे न भले पर 
शंकरसी अविनाशी है हिन्दी .
लोक से  ऊपर है  भवलोक 
त्रिलोक से न्यारी ये काशी है हिन्दी 
चाहे कभी भी पुकारो इसे 
कह दोगे  स्वयं  मृदुभाषी है हिन्दी 
बहर जाकर देखो लगेगा 
  • जहाँ में कहीं भी प्रवासी है हिन्दी