सारथी कृष्ण बने महाभारत
युद्ध में है यह स्यंदन हिन्दी ।
भाग सके न कहीं मन मादक
प्रीत का है यह बंधन हिन्दी ।
लाख भुजंग लपेटे हों शीतल
गंध न छाडे है चन्दन हिन्दी ।
हैं वन बाग अनेक परन्तु
जिसे कहते वह नंदन हिन्दी ।।
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जो इसे दूर से देख रहे
उनको भले ही तरसा रही हिन्दी ।
है इतनी ये उदार की प्यार से
प्रेम - सुधा बरसा रही हिन्दी ।
नित्य नया - नया रूप लगे
रमणीयता को दरसा रही हिन्दी ।
हारी नहीं कभी शत्रुओं से
हिय खोल सदा हरषा रही हिन्दी ।