बुधवार, 18 जनवरी 2012

चितचोर है हिन्दी

आनन को अतिरंजित जो करती
वह आँख की कोर है हिन्दी
दूर हो दो दिल पास लगे,
वह नेह है, नेह की डोर है हिन्दी
जो अनजाने में चित्त चुराये
बेहाल करे चित चोर है हिन्दी
स्वर्ग से श्रेष्ठ अमूल्य लगे
वह भारत भूमि है, भोर है हिन्दी

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

चन्द है हिन्दी

तेज में सूरज सी लगती
मधु शीतलता में ये चन्द है हिन्दी
सोरठा, छप्पय ,रोला दोहा
लगे चौपाई , ये छंद है हिन्दी
सेठ के खातिर छप्पन भोग तो
है वनवासी को कंद ये हिन्दी
नेम निबाहने में सब त्याग दी
सत्य में ये हरिचंद है हिन्दी

सोमवार, 16 जनवरी 2012

मान बढ़ा रही हिन्दी

है गढ़ भारत किन्तु विदेश में
रूप- स्वरूप गढ़ा रही हिन्दी
भागते दूर रहे जो कभी
उनको खुद आज पढ़ा रही हिन्दी
जो स्वर भावे सभी जन को
स्वर आज वही ये कढ़ा रही हिन्दी
एशिया , अफ्रिका , यूरोप में
निज देश का मान बढ़ा रही हिन्दी

समकोण है हिन्दी

है अपने में विशेषता को लिए
अर्जुन का गुरु द्रोण है हिन्दी
धारती चक्र सुदर्शन है कभी
वक्त तले रण-छोड़ है हिन्दी
चाहे जहाँ जिस कोण से देखो
दिखेगी सदा समकोण है हिन्दी
जो नई राह दिखाए सदा वह
जीवन दायिनी मोड़ है हिन्दी