बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

एक नया यह दौर है हिन्दी

दुःख इसे इस बात का है
अपने ही जनों से ये हारी है हिन्दी ।
कोमल है कश्मीर की वादी में
केशर की यह क्यारी है हिन्दी ।
निर्मल नारी स्वभाव लिए
नमिता से भरी यह नारी है हिन्दी ।
पिंगल शास्त्र , पुराण की पंक्ति है
वेद ऋचा सी ये प्यारी है हिन्दी ॥
* * *
भारत का जो निवासी बने
उसके लिए भाई का भात है हिन्दी ।
जो दुःख दर्द में आके खडा
दिन रात रहे वह नात है हिन्दी ।
जो सदा विष्णु के ऊपर राजे
वही तुलसीदल पात है हिन्दी ।
जो तम भेद प्रकाश का पुंज दे
वो सुखदायी प्रभात है हिन्दी ॥
* * *
औध की और बुन्देल की और तो ,
पूरब पश्चिम और है हिन्दी ।
तोता आ खोता लगावे जहां ,
वह आम्र का मादक बौर है हिन्दी ।
कागा ले भागा जो श्याम के हाथ से
रोटी का पावन कौर है हिन्दी ।
शोध पे शोध नए नित हो रहे ,
एक नया यह दौर है हिन्दी ॥


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें