सोमवार, 6 दिसंबर 2010

पाँव की धूल है हिन्दी


१८

झाड़ पहाड़ से रोके रुके नहीं भागीरथी की रवानी है हिन्दी ।

जो हर नैन में आके बसे वह कुंदन रूप जवानी है हिन्दी ।

शुम्भ - निशुम्भ बिगाड़ न पाये वही रण बिच भवानी है हिन्दी ।

सृष्टि के आदि से है मिलता इतिहास कथा वो कहानी है हिन्दी ।

१९

बाघ जहाँ मृग शावक के संग पानी पिये वह कूल है हिन्दी ।

जाकी सुगन्ध न रोके रुकी वह सृष्टि का पावन फुल है हिन्दी ।

भाषा अनेक समाज के बीच परन्तु सभी की ये मूल है हिन्दी ।

पाथर जीव बना जिससे वह पावँ है पावँ की धूल है हिन्दी ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेरणादायक सकारात्मक और लाजवाब लेखन

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  2. बहुत सुंदर।
    मेरी सलाह है कि कई दिन में कई छंद एक साथ लिखने के बजाय रोज मात्र एक छंद पोस्ट करें।

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