हिन्दी
जाके लखे से अघाये न दृष्टि
वही सुमनोरम दृश्य है हिन्दी ।
स्वाती के बूंद से मोती बने वह
ही जलराशि ये वृष्य है हिन्दी ।
यज्ञ की वेदी पे जो जलती
जगती के लिए वो हविष्य है हिन्दी ।
चेतो रे, चेतो, अभी से भी चेतो
कि भारत का ये भविष्य है हिन्दी ।
उमाशंकर जी बहुत ही सुंदर सवैया, जय हो आपकी| आप का छंदों के प्रति रुझान मनोहारी है| समस्यापूर्ति ब्लॉग पर अपना अमूल्य योगदान अवश्य दें|http://samasyapoorti.blogspot.comnavincchaturvedi@gmail.com
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