हिन्दी : डॉ.उमाशंकर चतुर्वेदी 'कंचन'
हिन्दी
शनिवार, 16 जून 2012
मेंह है हिन्दी
जों नई तजगी देती चले
वह भाव से पूरित नेह है हिन्दी ,
देव, मुनी , नर - नाग सभी
ललचे जिसपे वह देह है हिन्दी ,
कल सबेरे का भुला हुआ ,जहाँ
लौट के आए वो गेह है हिन्दी ,
प्यासी हुई धरती के लिए , यह
जीवन दायक मेंह है हिन्दी
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