कृष्ण दोहावली और गीतावली
जानकी मंगल है यह हिन्दी ।
भारत दुर्दशा , बावन वैष्णव ,
पार्वती मंगल है यह हिन्दी ।
रेणु , श्रीरुद्र , श्रीपुंज, श्रीकुंज ,
श्रीभट्ट, श्रीअंचल है यह हिन्दी ।
प्रेमीहैं, लाल हैं , मिश्र हैं सेठ हैं ,
कंचन , मंगल है यह हिन्दी ॥
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चंचलता का तो नाम न जाने
स्वभाव में सर्वदा थाई है हिन्दी ।
अंक में फूले फले जो सदा
उसके लिए बाप औ माई है हिन्दी ।
राज की लाज बचाने के हेतु
बनी यह पन्ना सी धाई है हिन्दी ।
जाके लिए तरसे दुनिया वह
प्रेम का आखर ढाई है हिन्दी । ।
उत्तम!!
जवाब देंहटाएंजाके लिए तरसे दुनिया वह
जवाब देंहटाएंप्रेम का आखर ढाई है हिन्दी....................
नमस्कार बन्धुवर................अत्यंत मनोहर सवैया.............मन प्रसन्न हो गया
समस्या पूर्ति ब्लॉग पर दोहों को ले कर अगली किश्त आने वाली है
इस बार भी आपके और आपकी मित्र मंडली के धमाकों की प्रतीक्षा रहेगी
http://samasyapoorti.blogspot.com
हिंदी के दर्द और महत्व को बयां करती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहिंदी के महत्त्व को दर्शाती सुन्दर रचना..
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