देव सुनें जिससे नित ध्यान से वेद में साम है गायन हिन्दी ।
नेम से प्रेम से लोग भजे जिसको वह राम रसायन हिन्दी ।
काव्य जिसे करुणा ने जना वह राम का रूप रामायन हिन्दी ।
देती प्रकाश है प्राण को वायु ये ऎसी सुरम्य वातायन हिन्दी ॥
देव सुनें जिससे नित ध्यान से वेद में साम है गायन हिन्दी ।
नेम से प्रेम से लोग भजे जिसको वह राम रसायन हिन्दी ।
काव्य जिसे करुणा ने जना वह राम का रूप रामायन हिन्दी ।
देती प्रकाश है प्राण को वायु ये ऎसी सुरम्य वातायन हिन्दी ॥
दानव , देव , ऋषी -मुनि केलि
करे जिससे वह क्रीड़ा है हिन्दी ।
मानव मात्र में सिर्फ दिखे वह
छूई- मुई जस व्रीड़ा है हिन्दी ।
सृष्टि के साथ से है जिसकी
महिमा वह नारी है ईड़ा है हिन्दी॥
हाथ में लेके जिसे हरषाती
बजाती सरस्वती वीणा है हिन्दी ॥
सिर्फ पुकार के देखो इसे
अपनी है अनाथ की नाथ है हिन्दी ।
कर्म ही पूजा है पाठ पढ़ाती ये
कर्मठ के लिए हाथ है हिन्दी ।
अंग इसे नहीं छांट सकोगे ये
आँख है , नाक है , माथ है हिन्दी ।
हिन्दी वगैर अधूरा सभी कुछ
जीवन मृत्यु के साथ है हिन्दी ॥
नाचे लाला छछिया भर छाछ पे
ये उस छाछ की राज है हिन्दी ।
सारा जहान अचम्भित होके
विलोके जिसे वह ताज है हिन्दी ।
काव्य कला कमनीय कलेवर
धारे हुए अभिराज है हिन्दी ।
भूत भविष्य समेटे हुए जो
नवीन दिखे वह आज है हिन्दी ॥
है कविता नवगीत है गीत ,
अगीत तो काव्य में छंद है कविता ।
एक से एक महाकवि काव्य हैं ,
मुक्तक और प्रबंध है कविता ।
राष्ट्र का प्रेम है नेम है धर्म का ,
सभ्यता का अनुबंध है हिन्दी ।
पौध है , डाल है , पात है , फूल है ,
फूलन में मकरंद है हिन्दी ॥
* * *
देश की रानी है हिन्दी ही भाषा ,
बता गये कामिल फादर हिन्दी ।
आमी नदी के किनारे बना दी
कबीर को पुष्प ये चादर हिन्दी ।
गागर सागर श्रीनटनागर के
व्यवहार में आदर हिन्दी ।
जो बरसे सुखशान्ति समृद्धि के
खातिर ही वह बादर हिन्दी ॥
सारथी कृष्ण बने महाभारत
युद्ध में है यह स्यंदन हिन्दी ।
भाग सके न कहीं मन मादक
प्रीत का है यह बंधन हिन्दी ।
लाख भुजंग लपेटे हों शीतल
गंध न छाडे है चन्दन हिन्दी ।
हैं वन बाग अनेक परन्तु
जिसे कहते वह नंदन हिन्दी ।।
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जो इसे दूर से देख रहे
उनको भले ही तरसा रही हिन्दी ।
है इतनी ये उदार की प्यार से
प्रेम - सुधा बरसा रही हिन्दी ।
नित्य नया - नया रूप लगे
रमणीयता को दरसा रही हिन्दी ।
हारी नहीं कभी शत्रुओं से
हिय खोल सदा हरषा रही हिन्दी ।
हिन्दी की ये प्रियता लखिए
रसखान रहीम ने भाखी है हिन्दी ।
स्वाद वही बतला सकता जिसने
रस तेरो ये चाखी है हिन्दी ।
लाज रखे बहिनी की सदा
उस भाई के हाथ की राखी है हिन्दी ।
जीवन में जो उजाला भरे
कबिरा की रमैनी है साखी है हिन्दी ॥
पावन रूप सुरूप लिए ,
लिए ग्रन्थ अनेक पुनीता है हिन्दी ।
नीति अनीति दिखाती हुई
भगवान के श्रीमुख गीता है हिन्दी ।
जो सुख सेज न जानी कभी
वह ही सिरीराम की सीता है हिन्दी ।
यज्ञ है यज्ञ की वेदी , स्रुवा स्रुचि
प्रोक्षनी और प्रणीता है हिन्दी ॥
शक्ति प्रवाहित है करती
हरती तम को वह तार है हिन्दी ।
जो हिम से चली सागर लों
नहीं टूटी कभी वह धार है हिन्दी ॥
भारत माँ के गले में सुशोभित
हो रहा जो वह हार है हिन्दी ॥
जीवन जीवन सा लगता नहीं
जाके विना वह सार है हिन्दी ॥
सातों है रंग भरा हुआ इन्द्र का
ईश्वर की यह इच्छा है हिन्दी ।
भोले के भाल पे राजत हाथ के
खप्पर में यह भिक्षा है हिन्दी ।
है गुरुता गुरु द्रोण लिए
एकलव्य की निष्ठित शिक्षा है हिन्दी ।
सीता सी है निर्दोष परन्तु
ये सीता की अग्नि परीक्षा है हिन्दी ॥
भारत का जो निवासी बने
उसके लिए भाई का भात है हिन्दी ।
जो दुःख दर्द में आके खड़ा
दिन रात रहे वह नात है हिन्दी ।
जो सदा विष्णु के ऊपर राजे
वही तुलसी दल पात है हिन्दी ।
जो तम भेद प्रकाश का पुंज दे
वो सुखदायी प्रभात है हिन्दी ।
दुःख इसे इस बात का है
अपने ही जनों से ये हारी है हिन्दी ।
कोमल है कश्मीर की वादी में
केशर की यह क्यारी है हिन्दी ।
निर्मल नारी स्वभाव लिए
नमिता से भरी यह नारी है हिन्दी ।
पिंगलशास्त्र, पुराण की पंक्ति है
वेद ऋचा सी ये प्यारी है हिन्दी ।
धारी हुई गुण रूप अपार है
शास्त्रीय नायिका धीरा है हिन्दी ।
भारत माँ की अनामिका की
मुंदरी में जड़ी यह हीरा है हिन्दी ।
साहस धैर्य समेटे हुए यह
आयुषी है बलबीरा है हिन्दी ।
राधा कभी अनुराधा कभी
कभी कृष्ण दिवानी ये मीरा है हिन्दी ॥
लोक का जो उपकार करे
वह नारद वीणा की तान है हिन्दी ।
जो कभी सूखे विराम न ले
वह ही सुरधेनु की थान है हिन्दी ।
जो निज देश से प्यार करे
उसके लिए देश की मान है हिन्दी ।
योगी यती जो समाधि लगाये हुए
बइठे वह ध्यान है हिन्दी ।
आत्मबली मरते न कभी इस
कारण आज लौ जिन्दी है हिन्दी ।
डोंगरी औ' बंगला, उड़िया औ'
नेपाली, मराठी, औ' सिन्धी है हिन्दी ।
कालिय नाग जहाँ हुआ मर्दित
पावन नीर कलिन्दी है हिन्दी ।
भारत माता इसे नित साजत
भाल पे राजत बिन्दी है हिन्दी ।