हिन्दी
पावन रूप सुरूप लिए ,
लिए ग्रन्थ अनेक पुनीता है हिन्दी ।
नीति अनीति दिखाती हुई
भगवान के श्रीमुख गीता है हिन्दी ।
जो सुख सेज न जानी कभी
वह ही सिरीराम की सीता है हिन्दी ।
यज्ञ है यज्ञ की वेदी , स्रुवा स्रुचि
प्रोक्षनी और प्रणीता है हिन्दी ॥
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