बुधवार, 18 जनवरी 2012

चितचोर है हिन्दी

आनन को अतिरंजित जो करती
वह आँख की कोर है हिन्दी
दूर हो दो दिल पास लगे,
वह नेह है, नेह की डोर है हिन्दी
जो अनजाने में चित्त चुराये
बेहाल करे चित चोर है हिन्दी
स्वर्ग से श्रेष्ठ अमूल्य लगे
वह भारत भूमि है, भोर है हिन्दी

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