हिन्दी : डॉ.उमाशंकर चतुर्वेदी 'कंचन'
हिन्दी
सोमवार, 16 जनवरी 2012
मान बढ़ा रही हिन्दी
है
गढ़
भारत
किन्तु
विदेश
में
रूप
-
स्वरूप
गढ़ा
रही
हिन्दी
।
भागते
दूर
रहे
जो
कभी
उनको
खुद
आज
पढ़ा
रही
हिन्दी
।
जो
स्वर
भावे
सभी
जन
को
स्वर
आज
वही
ये
कढ़ा
रही
हिन्दी
।
एशिया
,
अफ्रिका
,
यूरोप
में
निज
देश
का
मान
बढ़ा
रही
हिन्दी
॥
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